क्या अवसरवादी राजनीति हावी हो गई है?
विश्वास मत का दिन जैसे जैसे क़रीब आता जा रहा है वैसे वैसे सरकार और विरोधी खेमे के दिलों की धड़कनें तेज़ होती जा रही हैं.हालांकि दावा तो दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी जीत का कर रहे हैं लेकिन आँकड़ों के इस खेल में आख़िरकार ऊंट किस करवट बैठेगा ये कहना बहुत मुश्किल है.संसदीय प्रणाली में सरकार का विश्वास मत हासिल करना कोई नई बात नहीं है लेकिन जिस परमाणु मुद्दे पर वामपंथी दलों ने समर्थन वापस खींचा, वह राजनीति की इस दौड़ पीछे छूट गया लगता है.सरकार गिराने और बचाने का जो खेल चल रहा है, उसमें सांसदों की ख़रीद फरोख़्त, क्षेत्रीय राजनीति और आगामी लोक सभा चुनावों के समीकरण हावी हो गए लगते हैं.विश्वास मत की मौजूदा राजनीति के बारे में आपकी क्या राय है? भारत-अमरीका परमाणु समझौता राष्ट्रहित का मामला है या फिर इस मुद्दे पर अवसरवादी राजनीति हावी हो गई है? इस बारे में आपकी क्या राय है
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